शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

श्रावन मास की कामिका एकादशी..

युधिष्टर ने पूछा : गोविन्द ! वासुदेव ! आपको मेरा नमस्कार है ! श्रावण मास (गुजरात-महाराष्ट्र के अनुसार आषाढ) के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है? कृपया उसका वर्णन कीजिये।

भगवान श्री कृष्ण बोले : राजन ! सुनो। मैं तुम्हे एक पापनाशक उपाख्यान सुनाता हूँ, जिसे पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने नारदजी के पूछने पर कहा था।



नारद जी ने प्रश्न किया : हे भगवन ! हे कमलासन ! मैं आपसे यह सुनना चाहता हूँ की श्रावण के कृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? उसके देवता कौन हैं तथा उससे कौन सा पुण्य होता है? प्रभो ! यह सब बताइए।

ब्रह्माजी ने कहा : नारद सुनो। मैं सम्पूर्ण लोकों के हित की इच्छा से तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे रहा हूँ। श्रावण मास में जो कृष्णपक्ष की एकादशी होती है, उसका नाम 'कामिका' है। उसके स्मरण मात्र से वाजपये यज्ञ का फल मिलता है। उस दिन श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव और मधुसुदन आदि नामों से भगवान का पूजन करना चाहिए।

भगवान् श्री कृष्ण के पूजन से जो फल मिलता है, वह गंगा, काशी, नैमिषारण्य तथा पुष्कर क्षेत्र में भी सुलभ नहीं है। सिहं राशिः के बृहस्पति होने पर तथा व्यतिपात और दंडयोग में गोदावरी स्नान से जिस फल की प्राप्ति होती है, वही फल भगवान् श्री कृष्ण के पूजन से भी मिलता है।

जो समुद्र और वन सहित समूची पृथ्वी का दान करता है तथा जो 'कामिका एकादशी' का व्रत करता है। वे दोनों समान फल के भागी माने गए हैं।

जो ब्याई हुयी गाय को अन्यान्य सामग्रियों सहित दान करता है, उस मनुष्य को जिस फल की प्राप्ति होती है, वही 'कामिका एकादशी' का व्रत करनेवाले को मिलता है। जो नरश्रेष्ट श्रावण मास में भगवान् श्रीधर का पूजन करता है, उसके द्वारा गन्धर्वों और नागों सहित सम्पूर्ण देवताओं की पूजा हो जाती है।
लालमणि, मोती, वैदूर्य और मूंगे आदि से पूजित होकर भी भगवान विष्णु वैसे खुश नहीं होते जैसे तुलसीदल से पूजित होने पर होते हैं। जिसने तुलसी की मंजरियों से श्री केशव का पूजन कर लिया है उसके जन्म भर का पाप निश्चय ही नष्ट हो जाता है।
या दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी
रोगाणामभिवंदिता निरसनी सिक्तान्तक्त्रासिनी।
प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवत: कृष्णस्य संरोपिता
न्यास्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नम:॥

'जो दर्शन करने पर सारे पाप समुदाय का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचने पर यमराज को भी भय पहुंचती है, आरोपित करने पर भगवान् श्री कृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान् के चरणों में चढाने पर मोक्षरूपी फल प्रदान करती है, उस तुलसी देवी को नमस्कार है!' (पद्म पु.उ.खंड : ५६:२२)

जो मनुष्य एकादशी को दिन-रात दीप दान करता है, उसके पुण्य की संख्या चित्रगुप्त भी नहीं जानते। एकादशी के दिन भगवान श्री कृष्ण के सम्मुख जिसका दीपक जलता है, उसके पितर स्वर्गलोक में स्थित होकर अमृतपान से तृप्त होते हैं। घी या तिल के तेल से भगवान् के सामने दीपक जलाकर मनुष्य देह-त्याग के पश्चात करोड़ों दीपकों से पूजित हो स्वर्गलोक में जाता है।'
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं : युधिष्टिर ! यह तुम्हारे सामने मैंने 'कामिका एकादशी' की महिमा का वर्णन किया है। 'कामिका' सब पातकों को हरनेवाली है, अत: मानवों को इसका व्रत अवश्य करना चाहिए। यह स्वर्गलोक तथा महान पुण्यफल प्रदान करनेवाली है। जो मनुष्य श्रद्धा के साथ इसका माहात्मय श्रवण करता है, वह सब पापों से मुक्त हो श्रीविष्णुलोक में जाता है।




(श्री योग वेदांत सेवा समिति, संत श्री आसारामजी आश्रम की पुस्तक "एकादशी व्रत कथाएँ" से)

शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

आषाढ मास शुक्लपक्ष की शयनी एकादशी..

युधिष्ठर ने पूछा : भगवन ! आषढ मास के शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ? उसका नाम और विधि क्या है ? यह बताने की कृपा करें।
भगवान् श्री कृष्ण बोले : राजन ! आषढ शुकाल्पक्ष की एकादशी का नाम 'शयनी' है। मैं उसका वर्णन करता हूँ। वह महान पुण्यमयी, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करनेवाली, सब पापों को हरनेवाली तथा उत्तम व्रत है। आषढ शुक्लपक्ष में 'शयनी एकादशी' के दिन जिन्होंने कमल पुष्प से कमललोचन भगवन विष्णु का पूजन तथा एकादशी का उत्तम व्रत किया है, उन्होंने तीनों लोकों और तीनों सनातन देवताओं का पुजन कर लिया है। 'हरि शयनी एकादशी' के दिन मेरा एक स्वरुप राजा बलि के यहाँ रहता है और दूसरा क्षीरसागर में शेषनाग की शय्या पर तब तक शयन करता है, जब तक आगामी कार्तिक की एकादशी नहीं आ जाती, अत: आषढ शुक्लपक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी तक मनुष्य को भली भांति धर्म अचरण करना चाहिए। जो मनुष्य इस व्रत का अनुष्ठान करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है, इस कारण यतन पूर्वक इस एकादशी का व्रत का अनुष्ठान करना चाहिए। एकादशी की रात में जागरण करके शंख, चक्र, गदा धारण करनेवाले भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। ऐसा करनेवाले पुरुष के पुन्य की गणना करने में चतुर्मुख ब्रह्माजी भी असमर्थ हैं। राजन ! जो इस प्रकार भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले सर्वपापहारी एकादशी के उत्तम व्रत का पालन करता है, वह जाति का चंडाल होने पर भी संसार में सदा मेरा प्रिय करनेवाला है। जो मनुष्य दीपदान, पलाश के पत्ते पर भोजन और व्रत करते हुए चौमासा व्यतीत करते हैं, वे मेरे प्रिय हैं। चौमासे में भगवान विष्णु सोये रहते हैं, इसलिए मनुष्य को भूमि पर शयन करना चाहिए। सावन में साग, भादों में दही, क्वार में दूध और कार्तिक में दाल का त्याग कर देना चाहिए। जो चौमासे में ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है। राजन ! एकादशी के व्रत से ही मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है, अत: सदा इसका व्रत करना चाहिए। कभी भूलना नहीं चाहिए।
(श्री योग वेदांत सेवा समिति, संत श्री आसारामजी आश्रम की पुस्तक "एकादशी व्रत कथाएँ" से)