शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

आषाढ मास शुक्लपक्ष की शयनी एकादशी..

युधिष्ठर ने पूछा : भगवन ! आषढ मास के शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ? उसका नाम और विधि क्या है ? यह बताने की कृपा करें।
भगवान् श्री कृष्ण बोले : राजन ! आषढ शुकाल्पक्ष की एकादशी का नाम 'शयनी' है। मैं उसका वर्णन करता हूँ। वह महान पुण्यमयी, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करनेवाली, सब पापों को हरनेवाली तथा उत्तम व्रत है। आषढ शुक्लपक्ष में 'शयनी एकादशी' के दिन जिन्होंने कमल पुष्प से कमललोचन भगवन विष्णु का पूजन तथा एकादशी का उत्तम व्रत किया है, उन्होंने तीनों लोकों और तीनों सनातन देवताओं का पुजन कर लिया है। 'हरि शयनी एकादशी' के दिन मेरा एक स्वरुप राजा बलि के यहाँ रहता है और दूसरा क्षीरसागर में शेषनाग की शय्या पर तब तक शयन करता है, जब तक आगामी कार्तिक की एकादशी नहीं आ जाती, अत: आषढ शुक्लपक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी तक मनुष्य को भली भांति धर्म अचरण करना चाहिए। जो मनुष्य इस व्रत का अनुष्ठान करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है, इस कारण यतन पूर्वक इस एकादशी का व्रत का अनुष्ठान करना चाहिए। एकादशी की रात में जागरण करके शंख, चक्र, गदा धारण करनेवाले भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। ऐसा करनेवाले पुरुष के पुन्य की गणना करने में चतुर्मुख ब्रह्माजी भी असमर्थ हैं। राजन ! जो इस प्रकार भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले सर्वपापहारी एकादशी के उत्तम व्रत का पालन करता है, वह जाति का चंडाल होने पर भी संसार में सदा मेरा प्रिय करनेवाला है। जो मनुष्य दीपदान, पलाश के पत्ते पर भोजन और व्रत करते हुए चौमासा व्यतीत करते हैं, वे मेरे प्रिय हैं। चौमासे में भगवान विष्णु सोये रहते हैं, इसलिए मनुष्य को भूमि पर शयन करना चाहिए। सावन में साग, भादों में दही, क्वार में दूध और कार्तिक में दाल का त्याग कर देना चाहिए। जो चौमासे में ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है। राजन ! एकादशी के व्रत से ही मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है, अत: सदा इसका व्रत करना चाहिए। कभी भूलना नहीं चाहिए।
(श्री योग वेदांत सेवा समिति, संत श्री आसारामजी आश्रम की पुस्तक "एकादशी व्रत कथाएँ" से)

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