इन्द्रजीत ने शक्ति चलाई। धरनी गिरे लखन मुरछाई।
चिंता करके रोये राम। पतित पावन सीताराम॥ ७९॥
जब मैं अवधपुरी से आया। हाय! पिता ने प्राण गंवाया॥
वन में गई चुराई वाम। पतित पावन सीताराम॥ ८०॥ भाई, तुमने भी छिटकाया। जीवन में कुछ सुख नहीं पाया॥
सेना में भारी कोहराम। पतित पावन सीताराम॥ ८१॥
जो संजीवनी बूटी को लाये। तो भी जीवित हो जाए॥
बूटी लायेगा हनुमान। पतित पावन सीताराम॥ ८२॥
जब बूटी का पता न पाया। पर्वत ही लेकर के आया॥
कालनेमि पहुँचाया धाम। पतित पावन सीताराम॥ ८३॥
भक्त भरत ने बाण चलाया। चोट लगी हनुमत लंग्दय॥
मुख से बोले जय सिया राम। पतित पावन सीताराम॥ ८४॥
बोले भरत बहुत पछता कर। पर्वत सहित बाण बिठा कर॥
तुम्हें मिला दूँ राजा राम । पतित पावन सीताराम॥ 85॥
बूटी लेकर हनुमत आया। लखन लाल उठ शीश नवाया।
हनुमत कंठ लगाये राम। पतित पावन सीता राम॥ ८६॥
कुम्भकरण उठ कर तब आया। एक बाण से उसे गिराया॥
इन्द्रजीत पहुँचाया धाम। पतित पावन सीता राम॥ ८७॥
दुर्गा पूजा रावण कीनो॥ नौ दिन तक आहार न लीनो॥
आसन बैठ किया है ध्यान। पतित पावन सीता राम॥88 ॥
रावण का व्रत खंडित किना। परम धाम पहुँचा ही दीना॥
वानर बोले जयसिया राम। पतित पावन सीता राम॥ 89 ॥
सीता ने हरि दर्शन किना। चिंता-शोक सभी ताज दीना॥
हंसकर बोले राजाराम। पतित पावन सीता राम॥ ९०॥
पहले अग्नि परीक्षा कराओ। पीछे निकट हमारे आओ॥
तुम हो पति व्रता हे बाम। पतित पावन सीता राम॥ ९१॥
करी परीक्षा कंठ लगाई। सब वानर-सेना हरषाई॥
राज विभीष्ण दीन्हा राम। पतित पावन सीता राम॥ ९२॥
फिर पुष्पक विमान मंगवाया। सीता सहित बैठ रघुराया॥
किष्किन्धा को लौटे राम। पतित पावन सीता राम॥ ९३॥
ऋषि पत्नी दर्शन को आई। दीन्ही उनको सुन्दर्तई॥
गंगा-तट पर आए राम। पतित पावन सीता राम॥ ९४॥
नंदीग्राम पवनसूत आए। भगत भरत को वचन सुनाये॥
लंका से आए हैं राम। पतित पावन सीता राम॥ ९५॥
कहो विप्र, तुम कहाँ से आए। ऐसे मीठे वचन सुनाये॥
मुझे मिला दो भैया राम। पतित पावन सीता राम॥९६॥
अवधपुरी रघुनन्दन आए। मन्दिर-मन्दिर मंगल छाये॥
माताओं को किया प्रणाम। पतित पावन सीता राम॥९७॥
भाई भरत को गले लगाया। सिंहासन बैठे रघुराया॥
जग ने कहा, हैं राजा राम। पतित पावन सीता राम॥९८॥
सब भूमि विप्रों को दीन्ही। विप्रों ने वापिस दे दीन्ही॥
हम तो भजन करेंगे राम। पतित पावन सीता राम॥९९॥
धोबी ने धोबन धमकाई। रामचंद्र ने यह सुन पाई॥
वन में सीता भेजी राम। पतित पावन सीता राम॥१००॥
बाल्मीकि आश्रम में आई। लव और कुश हुए दो भाई॥
धीर वीर ज्ञानी बलवान। पतित पावन सीता राम॥ १०१॥
अश्वमेघ यज्ञ कीन्हा राम। सीता बिनु सब सुने काम।।
लव-कुश वहां लियो पहचान। पतित पावन सीता राम॥ १०२॥
सीता राम बिना अकुलाईँ। भूमि से यह विनय सुनाईं॥
मुझको अब दीजो विश्राम। पतित पावन सीता राम॥ १०३॥
सीता भूमि माई समाई। सुनकर चिंता करी रघुराई॥
उदासीन बन गए हैं राम। पतित पावन सीता राम॥ १०४॥
राम-राज्य में सब सुख पावें। प्रेम-मग्न हो हरि गुन गावें॥
चोरी चाकरी का नहीं काम। पतित पावन सीता राम॥ १०५॥
ग्यारह हज़ार वर्षः पर्यन्त। राज किन्ही श्री लक्ष्मीकंता॥
फिर बैकुंठ पधारे राम। पतित पावन सीता राम॥ १०६॥
अवधपुरी बैकुंठ सीधी। नर-नारी सबने गति पाई॥
शरणागत प्रतिपालक राम। पतित पावन सीता राम॥ १०७॥
'हरि भक्त' ने लीला गाई। मेरी विनय सुनो रघुराई॥
भूलूँ नहीं तुम्हारा नाम। पतित पावन सीता राम॥ १०८॥
यह माला पुरी हुयी मनका एक सौ आठ॥
मनोकामना पूर्ण हो नित्य करे जो पाठ ॥
॥ हरि ॐ ॥
धीर वीर ज्ञानी बलवान। पतित पावन सीता राम॥ १०१॥
अश्वमेघ यज्ञ कीन्हा राम। सीता बिनु सब सुने काम।।
लव-कुश वहां लियो पहचान। पतित पावन सीता राम॥ १०२॥
सीता राम बिना अकुलाईँ। भूमि से यह विनय सुनाईं॥
मुझको अब दीजो विश्राम। पतित पावन सीता राम॥ १०३॥
सीता भूमि माई समाई। सुनकर चिंता करी रघुराई॥
उदासीन बन गए हैं राम। पतित पावन सीता राम॥ १०४॥
राम-राज्य में सब सुख पावें। प्रेम-मग्न हो हरि गुन गावें॥
चोरी चाकरी का नहीं काम। पतित पावन सीता राम॥ १०५॥
ग्यारह हज़ार वर्षः पर्यन्त। राज किन्ही श्री लक्ष्मीकंता॥
फिर बैकुंठ पधारे राम। पतित पावन सीता राम॥ १०६॥
अवधपुरी बैकुंठ सीधी। नर-नारी सबने गति पाई॥
शरणागत प्रतिपालक राम। पतित पावन सीता राम॥ १०७॥
'हरि भक्त' ने लीला गाई। मेरी विनय सुनो रघुराई॥
भूलूँ नहीं तुम्हारा नाम। पतित पावन सीता राम॥ १०८॥
यह माला पुरी हुयी मनका एक सौ आठ॥
मनोकामना पूर्ण हो नित्य करे जो पाठ ॥
॥ हरि ॐ ॥
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