शुक्रवार, 5 जून 2009

रामायण मनका १०८ (भाग २)..

श्रृंगवेरपुर रघुबर आए। रथ को अवधपुरी लौटाए॥
गंगा तट पर आए राम। पतित पावन सीताराम॥ २९॥
केवट कहे चरण धुलवाओ। पीछे नौका में चढ़ जाओ॥ पत्थर कर दी नारी राम। पतित पावन सीताराम॥३०॥ लाया एक कठौता पानी। चरण-कमल धोये सुखमानी॥ नाव चढाये लक्ष्मण राम। पतित पावन सीताराम॥३१॥ उतराई में मुंदरी दीन्हीं। केवट ने यह विनती कीन्हीं॥ उतराई नहीं लूँगा राम। पतित पावन सीताराम॥३२॥
तुम आए हम घाट उतारे। हम आयेंगे घाट तुम्हारे॥
तब तुम पार लगाओ राम। पतित पावन सीताराम॥३३॥
भारद्वाज आश्रम पर आए। राम लखन ने शीष नवाए॥
एक रात कीन्हा विश्राम। पतित पावन सीताराम॥३४॥
भाई भरत अयोध्या आए। केकैई को यह वचन सुनाए॥
क्यों तुमने वन भेजे राम। पतित पावन सीताराम॥३५॥
चित्रकूट रघुनन्दन आए। वन को देख सिया सुख पाये॥
मिले भरत से भाई राम। पतित पावन सीताराम॥३६॥
अवधपुरी को चलिए भाई। ये सब केकैई की कुटिलाई॥
तनिक दोष नहीं मेरा राम। पतित पावन सीताराम॥३७॥
चरण पादुका तुम ले जाओ। पूजा कर दर्शन फल पाओ॥
भरत को कंठ लगाए राम। पतित पावन सीताराम॥ ३८॥
आगे चले राम रघुराया। निशाचरों का वंश मिटाया॥
ऋषियों के हुए पूरन काम। पतित पावन सीताराम॥ ३९॥
मुनिस्थान आए रघुराई। शूर्पणखा की नाक कटाई॥
खरदूषन को मारे राम।पतित पावन सीताराम॥ ४०॥
पंचवटी रघुनन्दन आए। कनक मृग 'मारीच' संग धाये॥
लक्ष्मण तुम्हे बुलाते राम। पतित पावन सीताराम॥ ४१॥
रावन साधु वेष में आया। भूख ने मुझको बहुत सताया॥
भिक्षा दो यह धर्म का काम। पतित पावन सीताराम॥ ४२॥
भिक्षा लेकर सीता आई। हाथ पकड़ रथ में बैठी॥
सूनी कुटिया देखी राम। पतित पावन सीताराम॥ ४३॥
धरनी गिरे राम रघुराई। सीता के बिन व्याकुलताई॥
हे प्रिय सीते, चीखे राम। पतित पावन सीता राम॥ ४४॥
लक्ष्मण, सीता छोड़ न आते। जनकदुलारी नहीं गवांते॥
तुमने सभी बिगाड़े काम। पतित पावन सीता राम॥ ४५॥
कोमल बदन सुहासिनी सीते। तुम बिन व्यर्थ रहेंगे जीते॥
लगे चाँदनी जैसे घाम। पतित पावन सीता राम॥ ४६॥
सुन री मैना, सुन रे तोता॥ मैं भी पंखों वाला होता॥
वन वन लेता ढूंढ तमाम। पतित पावन सीता राम॥ ४७॥
सुन रे गुलाब, चमेली जूही। चम्पा मुझे बता दे तू ही॥
सीता कहाँ पुकारे राम। पतित पावन सीताराम॥ ४८॥
हे नाग सुनो मेरे मन हारी। कहीं देखी हो जनक दुलारी॥
तेरी जैसी चोटी श्याम। पतित पावन सीताराम॥४९॥
श्यामा हिरनी तू ही बता दे। जनक-नंदिनी मुझे मिला दे॥
तेरे जैसी आँखें श्याम। पतित पावन सीताराम॥५०॥
हे अशोक मम शोक मिटा दे। चंद्रमुखी से मुझे मिला दे॥
होगा तेरा सच्चा नाम। पतित पावन सीताराम॥५१॥
वन वन ढूंढ रहे रघुराई। जनकदुलारी कहीं न पाई॥
गिद्धराज ने किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम॥५२॥
चखचख कर फल शबरी लाई। प्रेम सहित पाये रघुराई॥
ऐसे मीठे नहीं हैं आम। पतित पावन सीताराम॥५३॥
(क्रमश:)

1 टिप्पणी:

  1. श्री रघुवीर भक्त हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।
    जो कुछ हो सो तुम ही राजा । जय जय जय प्रभु राखो लाजा ।।
    राम आत्मा पोषण हारे । जय जय दशरथ राज दुलारे ।।
    और आस मन में जो होई । मनवांछित फल पावे सोई ।।
    तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै । तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ।
    अन्त समय रघुबरपुर जाई । जहां जन्म हरि भक्त कहाई ।।

    पतित पावन सीताराम।
    ♥ जय सियाराम जय जय सियाराम। जय सियाराम जय जय सियाराम।।♥

    जवाब देंहटाएं