उसके यह प्रश्न करते ही आदतन मैंने इसकी खोज शुरू की॥ काफी खोजबीन के बाद जो तथ्य मेरे सामने आए वो कुछ इस तरह से हैं॥ सबसे पहला ये कि सनातन धर्म की मान्यतानुसार सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का भार शेषनागके सिर पर स्थित है और यह ब्रह्माण्ड श्री विष्णु भगवान में समाया हुआ है॥ इसलिए ब्रह्माण्ड के भार को शेषनाग पर टिकाये रखने केलिए ही श्री हरी शेष शैय्या पर शयन करते हैं ॥ दूसरा कारण है कि भगवान विष्णु के साथ दिखाई देने वाले शेषनाग के ज़्यादातर पाँच या सात फन होते हैं जोकि इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी काम, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार, माया ओर तृष्णा के परिचायक हैं ॥ ओर शेषशैय्या पर विराज श्री विष्णु का स्वरुप हमें यही संदेश देता है की यदि हम सच्चे मन से उनका सुमिरन करें तो हमारे अन्दर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार, माया ओर तृष्णा रुपी शेषनाग के फन भी उसी तरह हमारे वश में होंगे जैसे वो श्री विष्णु के वश में हैं॥ हालाँकि ये बात बहुत छोटी है मगर इतनी सी बात समझ में आ जाए तो आत्मा को परमात्मा से मिलने से कोई अवगुणों का नाग नही रोक सकता॥
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