किष्किन्धाकांड
[दोहा २९]
बलि बांधत प्रभु बाढेउ सो तनु बरनि न जाइ ।
उभय घरी मंह दीन्हीं सात प्रदच्छिन धाइ॥
अंगद कहइ जाउं मैं पारा। जियँ संसय कछु फिरती बारा॥
जामवंत कह तुम्ह सब लायक। पठइअ किमि सब ही कर नायक॥
कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना॥
पवन तनय बल पवन समाना। बुद्धि बिवेक बिग्यान निधाना॥
कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥
उभय घरी मंह दीन्हीं सात प्रदच्छिन धाइ॥
अंगद कहइ जाउं मैं पारा। जियँ संसय कछु फिरती बारा॥
जामवंत कह तुम्ह सब लायक। पठइअ किमि सब ही कर नायक॥
कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना॥
पवन तनय बल पवन समाना। बुद्धि बिवेक बिग्यान निधाना॥
कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥
राम काज लगि तव अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्वताकारा॥
कनक बरन तन तेज बिराजा । मानहुं अपर गिरिन्ह कर राजा ॥
सिंहनाद करि बारहिं बारा। लीलहिं नाघउं जलनिधि खारा॥
सहित सहाय रावनहि मारी। आनउं इहाँ त्रिकूट उपारी॥
जामवंत मैं पूंछउं तोही । उचित सिखावनु दीजहु मोही॥
एतना करहु तात तुम्ह जाई। सीतहि देखि कहहु सुधि आई॥
तब निज भुज बल राजिवनैना। कौतुक लागि संग कपि सेना॥
तब निज भुज बल राजिवनैना। कौतुक लागि संग कपि सेना॥
छंद
कपि सेन संग संघारि निसिचर रामु सीतहि आनिहैं।
त्रैलोक पावन सुजसु सुर मुनि नारदादि बखानिहैं॥
जो सुनत गावत कहत समुझत परम पद नर पवाई।
रघुबीर पद पाथोज मधुकर दास तुलसी गावई॥
[ दोहा ३० (क)]
कपि सेन संग संघारि निसिचर रामु सीतहि आनिहैं।
त्रैलोक पावन सुजसु सुर मुनि नारदादि बखानिहैं॥
जो सुनत गावत कहत समुझत परम पद नर पवाई।
रघुबीर पद पाथोज मधुकर दास तुलसी गावई॥
[ दोहा ३० (क)]
भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारी ॥
[सोरठा ३० (ख)]
नीलोत्पल तन स्याम काम कोटि सोभा अधिक।
सुनिअ तासु गुन ग्राम जासु नाम अघ खग बधिक॥
[सोरठा ३० (ख)]
नीलोत्पल तन स्याम काम कोटि सोभा अधिक।
सुनिअ तासु गुन ग्राम जासु नाम अघ खग बधिक॥
(क्रमश:)
हिन्दी चिटठा जगत में आपका स्वागत है , ऐसे ही अपनी लेखनी से हमें परिचित करते रहें
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
मयूर दुबे
अपनी अपनी डगर
jai shree raam