देवर्षि नारद राजा अम्बरिष से कहते हैं : "राजन! जो वैशाख में सूर्योदय से पहले भगवत चिंतन करते हुए पुण्य स्नान करता है, उससे भगवान विष्णु निरंतर प्रीति करते हैं। पाप तभी तक गरजते हैं जब तक जीव यह पुण्यस्नान नहीं करता॥
वैशाख मास में सब तीर्थ आदि देवता बाहर के जल (तीर्थ के अतिरिक्त) में भी सदैव स्थित रहते हैं॥ भगवान विष्णु की आज्ञा से मनुष्यों का कल्याण करने के लिए वे सूर्योदय से लेकर छ: दण्ड (२ घंटे २४ मिनट) तक वहां मौजूद रहते हैं॥ सब दानों से जो पुन्य होता है और सब तीर्थों में जो फल होता है, उसी को मनुष्य वैशाख में केवल जलदान करके पा लेता है। यह सब दानों से बढ़कर हितकारी है॥
वैशाख के शुक्ल पक्ष की तृतीया (२००९ में २७ अप्रैल) 'अक्षय तृतीया' के नाम से जानी जाती है॥ यह अक्षय फलदायिनी होती है॥ इस दिन दिये गए दान, किये गए प्रात: पुण्यस्नान, जप, तप, हवन आदि कर्मों का शुभ और अनंत फल मिलता है॥
'भविष्य पुराण' व् 'मत्स्य पुराण' के अनुसार इस तिथि को किये गए सभी कर्मों का, उपवास का फल अक्षय हो जाता है॥ इसलिए इसका नाम अक्षय पड़ा॥ त्रेता युग का प्रारम्भ इसी तिथि से हुआ है॥ इसलिए यह समस्त पाप नाशक तथा सर्व सौभाग्य प्रदायक है॥
'भविष्य पुराण' व् 'मत्स्य पुराण' के अनुसार इस तिथि को किये गए सभी कर्मों का, उपवास का फल अक्षय हो जाता है॥ इसलिए इसका नाम अक्षय पड़ा॥ त्रेता युग का प्रारम्भ इसी तिथि से हुआ है॥ इसलिए यह समस्त पाप नाशक तथा सर्व सौभाग्य प्रदायक है॥
इसमें पानी के घड़े, पंखे, ओले (चीनी के लड्डू), खडाऊ, जूते, छाता, गौ, भूमि, स्वर्णपात्र, वस्त्र आदि का दान पुण्यकारी तथा गंगास्नान अति पुण्यकारी माना गया है॥ इस दिन कृषि कार्य का प्रारम्भ शुभ और सम्रृद्धि प्रदायक है॥ इसी तिथि को ऋषि नर-नारायण, भगवान परशुराम और भगवन हयग्रीव का अवतार हुआ था॥ यह अत्यन्त पवित्र और सुख सौभाग्य प्रदान करनेवाली तिथि है॥ इस तिथि को सुख सम्रृद्धि और सफलता की कामना से व्रतोत्सव मनाने के साथ ही अस्त्र-शस्त्र, वस्त्र-आभूषण आदि बनवाए, ख़रीदे और धारण किए जाते हैं॥ नई भूमि खरीदना, भवन, संस्था आदि में प्रवेश इस तिथि को शुभ और फलदायी माना जाता है॥
ऋतुदेव जी राजा जनक से कहते हैं "राजेंद्र ! वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में जो अन्तिम तीन पुण्यमयी तिथियाँ हैं - त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा (२००९ में ७ से ९ मई) ये बड़ी पवित्र और शुभ कारक हैं॥ इनका नाम 'पुष्करिणी' है, ये सब पापों का क्षय करनेवाली हैं॥ पूर्वकाल में वैशाख शुक्ल एकादशी को शुभ अमृत प्रकट हुआ॥ द्वादशी को भगवान विष्णु ने उसकी रक्षा की॥ त्रयोदशी को उन श्री हरि ने देवताओं को सुधा पान कराया॥ चतुर्दशी को देवविरोधी दैत्यों का संहार किया और पूर्णिमा के दिन समस्त देवताओं को उनका साम्राज्य प्राप्त हो गया॥ इसलिए देवताओं ने संतुष्ट होकर इन तीन तिथियों को वर दिया : वैशाख की ये तीन शुभ तिथियाँ मनुष्यों के पापों का नाश करनेवाली तथा उन्हें पुत्र-पौत्रादि फल देनेवाली हों॥ जो सम्पूर्ण वैशाख में प्रात: पुण्य स्नान न कर सका हो, वह इन तिथियों में उसे कर लेने पर पूर्ण फल को ही पता है॥ वैशाख में लौकिक कामनाओं को नियंत्रित करने पर मनुष्य निश्चय ही भगवान विष्णु का सायुज्य प्राप्त कर लेता है॥
जो वैशाख में अन्तिम तीन दिन "भगवदगीता" का पाठ करता है, उसे प्रतिदिन अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है॥ और जो 'श्री विष्णुसहस्त्रनाम' का पाठ करता है, उसके पुण्य का वर्णन करने में भूलोक व् स्वर्ग में कौन समर्थ है॥
पूर्णिमा को सहस्त्रनाम के द्वारा भगवान मधुसूदन को दूध से नेह्लाकर मनुष्य पापहीन बैकुंठ धाम में जाता है॥ वैशाख में प्रतिदिन भागवत के आधे या चौथाई श्लोक का पाठ करनेवाला मनुष्य ब्रह्मभाव को प्राप्त होता है॥ जो वैशाख के अन्तिम तीन दिनों में 'भागवत' शास्त्र का श्रवण करता है, वह जलसे कमल के पत्ते की भांति कभी पापों से लिप्त नहीं होता॥ उक्त दिनों के सम्यक सेवन से कितने ही मनुष्यों ने देवत्व प्राप्त कर लिया॥ कितने ही सिद्ध हो गए और कितनों ने ब्रह्मत्व पा लिया॥ इसलिए वैशाख के अन्तिम तीन दिनों में पुण्यस्नान, दान और भग्वत्पूजन आदि अवश्य करना चाहिए॥
देवर्षि नारदजी ने यह उत्तम उपाख्यान राजर्षि अम्बरीष को सुनते हुए कहा था कि यह सब पापों का नाशक तथा सम्पूर्ण सम्पतियों को देनेवाला है॥ इससे मनुष्य भक्ति, मुक्ति, ज्ञान एवं मोक्ष पाता है॥ जो इस पापनाशक एवं पुण्यवर्धक उपाख्यान को सुनता अथवा पड़ता है, वह श्रेष्ठ गति को प्राप्त होता है॥
पूर्णिमा को सहस्त्रनाम के द्वारा भगवान मधुसूदन को दूध से नेह्लाकर मनुष्य पापहीन बैकुंठ धाम में जाता है॥ वैशाख में प्रतिदिन भागवत के आधे या चौथाई श्लोक का पाठ करनेवाला मनुष्य ब्रह्मभाव को प्राप्त होता है॥ जो वैशाख के अन्तिम तीन दिनों में 'भागवत' शास्त्र का श्रवण करता है, वह जलसे कमल के पत्ते की भांति कभी पापों से लिप्त नहीं होता॥ उक्त दिनों के सम्यक सेवन से कितने ही मनुष्यों ने देवत्व प्राप्त कर लिया॥ कितने ही सिद्ध हो गए और कितनों ने ब्रह्मत्व पा लिया॥ इसलिए वैशाख के अन्तिम तीन दिनों में पुण्यस्नान, दान और भग्वत्पूजन आदि अवश्य करना चाहिए॥
देवर्षि नारदजी ने यह उत्तम उपाख्यान राजर्षि अम्बरीष को सुनते हुए कहा था कि यह सब पापों का नाशक तथा सम्पूर्ण सम्पतियों को देनेवाला है॥ इससे मनुष्य भक्ति, मुक्ति, ज्ञान एवं मोक्ष पाता है॥ जो इस पापनाशक एवं पुण्यवर्धक उपाख्यान को सुनता अथवा पड़ता है, वह श्रेष्ठ गति को प्राप्त होता है॥
(संत श्री आसाराम जी आश्रम द्वारा प्रकाशित मासिक पुस्तक "ऋषि प्रसाद" के मई २००९ अंक में प्रकाशित॥ ऋषि प्रसाद घर बैठे प्राप्त करने के लिए अमदावाद आश्रम में संपर्क करें, फोन न०- : 079-39877714, 079-66115714)
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